जैसे नाज़िम कोई हो दंगों का
Poet
Ajay Pandey तू मुझे और ज़ख्म क्या देगा मैं मुकम्मल बना हूँ ज़ख्मों का अब तो हर शख्स यूँ नज़र आये जैसे ताजिर मिला हो रिश्तों का रौशनी बेचने चला मैं भी शहर सारा जहाँ है अंधों का मेरे रहबर का है अमल ऐसा जैसे नाज़िम कोई हो दंगों का ताजिर--.VYAPAARI अमल-- आचरण नाज़िम-- व्यवस्थापक |
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