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Originally Posted by MANOJTANHA
इजहारे इश्क़ हम कभी ना कर पाए, ये खता थी हमारी
आँखों मे पढ़ कर भी अनजान बने रहे, ये अदा थी तुम्हारी,
अपना तुम्हे मान कर भी अपना कहें कैसे
बस इसी कशमकश मे गुजर गई ये जिंदगानी हमारी।
मनोज तन्हा
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khayaal aacha hai saheb likhte rahiye