18th February 2016, 02:10 PM
"गुलज़ार साहब अमृता जी के बारे मैं कहते हैं...."
"एक बुढ़िया चाँद मैं चरखे पे बैठी बादल काटा करती है,
और एक गुड़िया ज़मीन पे बेठी सपने काटा करती थी,
नो साल की उमर से ही..या शायद उससे भी पहले,
छोटे - छोटे रुई के गाले बाट के पूड़ियाँ बना के
अपनी पच्छी (टोकरी) मैं जमा कर लेती थी
और फिर उनसे नज़्मो का सूत काटा करती थी
उसकी पच्छी मैं और भी बहुत कुछ था,
(नॉवेल ,अफ़साने ,सफरनामे और नज़्में)
धुप से रंग निचोड़ लिया करती थी
और मौसमो से कहती थी की उसका दुपट्टा तो रंग दें,
गुलाल की तरह सपने मुठ्ठी मैं भर के उड़ाया करती थी,
वो गुड़िया भी अमृता ही थी
और चाँद में बेठी बुढ़िया भी वही है
कान लगा के सुनो उसके चरखे की घूं-घूं यहाँ तक सुनाई देती है।
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.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
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