कतअ -
29th March 2006, 06:46 AM
कतअ
खंडहर से उठा लाया हुँ मैँ एक जख्म फर्सुदा
देखा तो उसमे खून से भरी मौजुद ताज्गी थी .
बरसो हुए तो भी ये जखम खुश्काया न मुर्झया,
तेरे वो झहरीले तीरोँ मे अजब की सादगी थी.
मोहम्मदअली भैडु ”वफा”अली.
28मार्च2006.
|