24th October 2017, 12:04 AM
भाई बेहद उम्दा क़बूल करें
जाने कौन सी मंज़िल कहाँ चलता जा रहा हूँ मैं
उसको पा रहा हूँ या ख़ुद को खोता जा रहा हूँ मैं ..
ये उसका मज़ाक़ का तरीक़ा है कोई तँज़ नहीं मुझपर
हर बार यही कहकर ख़ुद की अना को बहला रहा हूँ में ..
इस बार की ग़लती मेरे लिए उसकी आख़री है
जाने कबसे ख़ुद को यही समझा रहा हूँ मैं ...
जाने कौन है पांडव जाने कौन है कौरव इनमें
दिल-ओ-दिमाग़ की लड़ाई में कुरुक्षेत्र बनता जा रहा हूँ मैं ...
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