19th June 2018, 05:16 PM
इस नज़्म की एक लाइन भुल गया था अब पुरी नज़्म फिर से लिख रहा हुं
तन्हा जिया करते हैं हम अपनी जिंदगी
उदासियों के साये में, किसी को बता न देना,
कि कहीं ये अँधेरे ना हमसे छिन जाये,
वजह ये नहीं कि उजालों से हम डरते हैं
अंधेरो में रह्ने की, कुछ आदत सी पड गयी है
तन्हाई उदासी और अंधेरों की,
तुमसे बिछड़ने के बाद,
किसी को बता ना देना
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