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1st September 2018, 05:20 PM
Kal Amrita ji ka janamdin tha, to unko samarpit unke Imroz ki baate
एक ज़िन्दगी ख़त्म होते हम उसे अतीत बना देते हैं , इमरोज़ अपने सशक्त रूहानी-काव्य के माध्यम से अमृता प्रीतम को लेकर आज भी वर्तमान में जीते हैं, बिल्कुल अपने नाम की तरह ! उनके अनुसार
जिस इन्सान ने रूह के रिश्तों को नहीं सीखा, वह नज़्मों की सौगात भला क्या पायेगा ! ज़ब भी इमरोज़ का मन अशांत हुआ तो मन और रिश्तों के बीच आ गई, पर यह रिश्तों का संसार इमरोज़ का है , जहाँ उनकी कलम बोलती है-
ज़िंदगी खेलती है
पर हमउम्रों से...
कविता खेलती है
बराबर के शब्दों से, ख़यालों से
पर अर्थ खेल नहीं बनते
ज़िंदगी बन जाते हैं...
रात-दिन रिश्ते भी खेलते हैं
सिर्फ़ मनचाहों से
उम्रें कोई भी हों
ज़िंदगी में मनचाहे रिश्ते
अपने आप हमउम्र हो जाते हैं...
जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारा अहम् मर जाता है ,
फ़िर वह हमारे और हमारे प्यारके बीच में नही आ सकता .
उन्होंने कहा कि जिस दिन से मैं अमृता से मिला हूँ
मेरे भीतर का गुस्सा एक दम से शान्त हो गया है
मैं नही जानता यह कैसे हुआ .शायद प्यार की भावना इतनी प्रबल होती है
कि वह हमे भीतर तक इतना भर देती है कि हम गुस्सा नफरत आदि सब भूल जाते हैं .
हम तब किसी के साथ बुरा व्यवहार नही कर पाते
क्यूंकि बुराई ख़ुद हमारे अन्दर बचती ही नही ...
इमरोज़
अगस्त का महिना आते ही हम जो अमृता से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं दिल ही दिल में इंतज़ार करने लगते है आज की तारीख का.. इक मुसलसल इंतज़ार ..जैसे अपने किसी का...अपनी ही परछाई की पैदाईश का जन्मदिवस...
अजीब सी उलझन..इक कसमसाहट ... खुद की रूह को उनके लिखे में पा जाने की...इक आबशार ...नहीं नहीं आफ़ताब... विचारों के इक जलजले का जन्म हुआ हिन्दुस्तान के रूहानी फ़लक पर......
हमको.....जो उनको अपने वजूद के आईने की तरह जीते हैं.....जब से उनके लिखे से मुख़ातिब हुये हैं इक अलग किस्म की हिम्मत की दरकार होती है
उन्हे पढ़ने के लिए ....
परंत !!!
अमृता सिर्फ पढ़ने के लिये नहीं हैं.....
कमबख्त ...जीने के लिये है...... दिल खोलकर जीने के लिये ...
( स्मृतियों से )
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.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
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