बहुत याद आता है "दीदी" तुम्हारा मुझे "भाई" & -
30th November 2008, 01:34 AM
बहुत याद आता है "दीदी" तुम्हारा मुझे "भाई" कहके बुलाना
वो मद्धम सा मुस्कुराना और वो झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाना,
समझना मेरी हर बात को और मुझे हर बात समझाना,
वो लड़ना तेरा मुझसे और फिर प्यार जताना
बहुत याद आता है "दीदी" तुम्हारा मुझे "भाई" कहके बुलाना,
वो शाम ढले करना बातें मुझसे और अपनी हर बात मुझे बताना,
सुनके मेरी बेवकूफियां तुम्हारा ज़ोर से हंस जाना,
मेरी हर गलती पे लगाना डांट और फिर उस डांट के बाद मुझे प्यार से समझाना,
कोई और न होगा तुमसे प्यारा मुझे यह आज मैंने है जाना,
वो राखी और भाई-दूज पे तुम्हारा टीका लगाना,
कुमकुम मैं डूबी ऊँगली से मेरा माथा सजाना,
खिलाना मुझे मिठाई प्यार से और दिल से दुआ दे जाना,
बाँध के धागा कलाई पे मेरी अपने प्यार को जताना,
कभी बन जाना माँ मेरी और कभी दोस्त बन जाना,
देना नसीहतें मुझे और हिदायतें दोहराना,
जब छाये गम का अँधेरा तोः खुशी की किरण बनके आना,
हाँ तुम्ही से तोः सिखा है मैंने गम मैं मुस्कुराना,
कहता है मन मेरा रहके दूर तुमसे मुझे अब एक लम्हा भी नही बिताना,
अब बस "गुड्डू" को तोः है अपनी "परी दीदी" के पास है जाना,
हैं बहुत से एहसास दिल मैं समाये पता नही अब इन्हे कैसे है समझाना,
बस जान लो इतना "दीदी" बहुत याद आता है तुम्हारा "भाई" कहके बुलाना,
This poem is for my beloved sister...........
From A Poetic Brother Who Misses Her Sister Alot...
नलिन (गुड्डू)
Nalin
Uski Har "Uff" pe hum apni jaan lutate rahe,
Uski Shaqsiyat ko karke buland hum khudko mitate rahe,
Raahe-e-mohobbat me hamne kuch yun paya sila wafa ka,
woh dete rahe zakhm pe zakhm aur ham muskurate rahe
Please Honor me and my creative writing by visitng my website @ www.nalin-mehra.blogspot.com
|