29th April 2016, 07:25 AM
टूटे हुए ख्वाबों से ज़िन्दगी बना लेता हूँ
मैं कांच के टुकड़ों से आइना बना लेता हूँ
फेंकते हैं लोग जो पत्थर मुझपे
मैं सबको जोड़कर मूरत बना लेता हूँ
राह-ऐ-मंजिल में ही कितनी भी मुश्किलें
मैं जब ठानता हूँ रास्ता बना लेता हूं
रात के अँधेरे में भटकता नहीं मैं
हर सितारे को अपना चाँद बना लेता हूँ
न पूछो मुझसे मेरी सेहत का राज
मैं हर दर्द को दवा बना लेता हूँ
वो इतराते हैं अपनी हाथ की लकीरों पे
मैं मेहनत से अपनी तक़दीर बना लेता हूँ
मेरे रेत के महल देख के हंसने वालों
मैं इरादों को फौलाद बना लेता हूँ
आते नहीं जो बुरे वक़्त पे काम मेरे
मैं ऐसे दोस्तों को गुज़रा हुआ वक़्त बना लेता हूँ
आसमाँ में चाँद को तकता नहीं मैं
आगे हाथ बड़ा के अपना बना लेता हूँ
मिलता नहीं जब मंदिरो मस्जिद में वो
मैं मोहब्बत को अपना खुदा बना लेता हूँ
मंज़िल पे पहुँच के रुकता नहीं मैं
एक नए सूरज को अपना मुकाम बना लेता हूँ
जीवन में हो मेरे कितना भी अँधेरा
इंसान हूँ दो पत्थर से आग बना लेता हूँ
अपनों से करता नहीं कोई गिला शिकवा
मैं दुश्मन को भी अपना दोस्त बना लेता हूँ
दौलत शौहरत के पीछे भागता नहीं
भीड़ से अलग पहचान बना लेता हूँ
उम्मीद का दामन कभी छोड़ता नहीं 'अरु'
एक दीपक से दीवाली बना लेता हूँ
एक हाथ में दिल उनके एक हाथ में खंजर था
चेहरे पे दोस्त का मुखौटा अजीब सा मंजर था
Arvind Saxena
Ph. No. 7905856220
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