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Originally Posted by ruchika
उम्र के साथ इस तरह धुँधँली हो जाती है यादें….
की जिस घर मे बरसों रहे हम…
आज उस घर की दीवारों के रंग भी याद नहीं...
उम्र के साथ इस तरह भूली बिसरी हो जाती है बातें…
की जिन नगमो को गुनगुनाया करते थे हम….
आज उनके बोल तक याद नहीं...
उम्र के साथ यूँ बढ़ गयी है जिम्मेदारियां…
की जिनके साथ खेलते थे रोज नए नए खेल…
आज उन दोस्तों के नाम तक याद नहीं..
उम्र के साथ यूँ बदल गयी है ज़िन्दगी….
की किस तरह जीने का सोचा था..
आज कुछ भी याद नहीं...
आज कुछ भी याद नहीं...
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Sach baat hai bahot bhavuk ho gayi main aapki kavita padh me.....
Likhte rahiye aati rahiyega..