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Originally Posted by sunita virender
उम्रों के
बूढे हुए जिस्मो को लांघकर
अगर कभी हम मिले तो
उस वक़्त भी मेरी ठहरी हुई इन आँखों में
मुस्करा रही होगी तुम्हारी मुहब्बत
तुम्हे जीतने के लिए
मैने कभी कोई बाजी नही खेली थी
अपने आप ही रख दी थी
सारी की सारी नज़में तुम्हारे सामने
मुहब्बत तो हारने का नाम हे......
-अमृता प्रीतम
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Waaah.....bahut khoob nazm.....................