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17th February 2016, 04:44 PM
मैंने अमृता जी से १९६३ के एक मिलन के दोरान उनसे सुनी Paul Potts की कविता की कुछ पंक्तियाँ साझी की थीं। कुछ पाठकों ने और अंश साझे करने का आग्रह किया ... अत: यहाँ और अंश पेश कर रहा हूँ। अमृता जी को निम्न पंक्तियाँ लगभग ज़बानी याद थीं, और फिर उन्होंने मुझको अपना प्रकाशित वह लेख भी दिया जिसमें उन्होंने Paul Potts के विषय में लिखा था। कुछ पंक्तियाँ अमृता जी ने पंजाबी में अनुवादित सुनाई, जो उनकी आवाज़ में बहुत ही मीठी लगीं ... और फिर बाकी हिन्दी लेख में मुझको पढ़ने को दीं।
पहली तीन पंक्तियाँ अमृता जी से सुनी हुई पंजाबी में हैं , और फिर उनका अनुवाद है।
इक दिन मैं गली विच मौत नूँ वेख्या-सी
ओ बिलकुल इस ज़िन्दगी वगण है
जेड़ी मैं तेरे बगैर जी रयाँ
Hindi …
एक दिन मैंने गली में मौत को देखा था
वह बिलकुल इस ज़िन्दगी जैसी है
जो मैं तुम्हारे बिना जी रहा हूँ
.................................................. .
अगर मुझे सारी ज़िन्दगी का
एक शब्द में वर्णन करना हो
तो मैं कहूँगा, “ एकाकीपन “
और फिर
इस शब्द को दुहरा दूंगा
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.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
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