ढलता नज़र आया_मुहम्मदअली वफा
तु हर ऎक बातमें यकता नज़र आया
में गरीब हर जगह तनहा नज़र आया
में तो सिमत गया अज़मत के बार से
साया अना का कुछ बढता नज़र आया
मुफ्लिस के मुकद्दरमें थे दो चार ही कतरे
पानी मिलाके वो तो ज़ुमता नज़र आया
तुने दिया अज़मते अक्वामका परचम
छोडा तुझे तो वो भी गिरता नज़र आया
रोशनी कि आड में कुछ शान थी उनकी
सूरज़ ढला तो वो भी ढलता नज़र आया