6th January 2008, 10:49 AM
रुक गया._वफा
मुफ्लीसकी तक़दीरका मयखाना रुक गया.
आते आते हाथ तक पयमाना रुक गया.
मंझील बहुत करीब थी, राहबर बना रकीब
आया कोइ एक मोड तो बैगाना रुक गया.
आकिल निकल गया हदे उश्शाक से आगे,
सहराकी छलनीओपे दीवाना रुक गया.
दर्द का अजीब एक सूरज भी जल उठा
चांदनीके गांवमे अनजाना रुक गया..
जंगल उगल गइ बुलबुलोंकी कुछ चहक,
बहते हुए दरियाका एक धाना रुक गया.
उडते रहे हवाओंमें कुछ उम्मीद के शरारे
हम जो चले आगे ‘वफा, जमाना रुक गया.
(5 डीसे.2008)
|