बरसो -
1st August 2018, 07:31 PM
उम्रों सी बड़ी होती ये ख्वाइशें ..
अब परिंदों सी छटपटाने सी लगी हैं,
आसमानों में दूर तक उड़ने की
कोशिशें थक जाने सी लगी है,
वो एक शक्श जो चाँद तक
जाने का हौसला रखता था
उसके ही घुटनों की हड्डियां
अब चर्मराने सी लगी है,
मेरे शहर भी ठहर जाओ के बादलों
पल दो पल को ही सही
जिंदगी की इस जद्दो जेहद में
ये धूप मेरे हौसले गिराने लगी है,
भीतर कोई बैचैन सा परिंदा कब से
आसमानों को चोंच उठाए तकता है,
बरसो के भीतर की सब नदियाँ
सूखी सूखी सी नज़र आने लगी हैं,
इतना बरसो ए आसमानों के मेरी
बंज़र सी जमीन को तुम तर कर दो,
मेरे भीतर की हरियाली इस दौर के
प्रदूषण से मुरझाने सी लगी है।
- चाँद
Sachh bolne ka hausla to, hum bhi rakhte haiN lekin
Anjaam sochkar, aksar khaamosh hi reh jaate haiN.
- Chaand
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