View Single Post
अगर चूमनी है तो चूम उस गरीब की दरगाह
Old
  (#1)
kavyadharateam
Registered User
kavyadharateam is a jewel in the roughkavyadharateam is a jewel in the roughkavyadharateam is a jewel in the roughkavyadharateam is a jewel in the rough
 
kavyadharateam's Avatar
 
Offline
Posts: 39
Join Date: Sep 2008
Location: New Delhi,India,
Rep Power: 0
अगर चूमनी है तो चूम उस गरीब की दरगाह - 25th January 2009, 01:20 PM

ये शहंशाहों के मक़ाबिर , ये जहाँपनाहों की मज़ार
जिन पर झुकने के लिये बेताब आदम की क़तार ,
जिन पर रोशन शमा , जलते कदींल `` औ'' चिराग
हवा में तैरती बेशक़ीमती इत्र की बौछार ,
फ़ना होने के बावजूद वही शहंशाही अन्दाज़ हैं
और आवाम माज़ी की तरह रोटी की मोहताज है ।
तारिक़ गवाह है उन शहंशाही दौरों की
किस क़दर आवाम पर ज़ुल्म ढाये जाते थे
ज़रा कराह पर ज़ुबाँ ज़ुदा हो जाती थी
ज़रा सी आह पर क़हर बरपाये जाते थे ।
शाही ख्व़ाहिश ही फक़त ख्व़ाहिश हुआ करती थी
दर्दे - आवाम की खातिर ज़रा फुर्सत न थी
शाही शौक़ में मिट जाती थी ज़िन्दगी कितनी
नज़रे -शाही में ज़िन्दगी की अहमियत न थी ।
कितनी मासूम ``औ'' नादान कलियों की हयात
पल में शाही नज़र की हवस खा जाती थी
फिर ज़िन्दगी जिनकी खुद़ पर ही शर्मिन्दा होकर
हरम की तंग गलियों में कहीं खो जाती थी ।
कुछ हवस ने , कुछ शहंशाही ज़िस्म की भूख ने
कितने हँसते हुए आशियाँ कर दिये वीरान
कहीं पर फेंक दी दौलत की मुट्ठियाँ भरकर
कहीं अंजामे बग़ावत के छोड़ दिये निशान ।
ज़िन्दगी आवाम की इस तरह बेबस कर दी
लाख चाह कर भी नहीं आँसू निकलते थे
पुश्त - दर- पुश्त पहले ही बिक जाती थीं
शाही - एहसान से जिनके तिफ़्लात पलते थे ।
भला ऐसे दर पे सिज़दों से क्या फ़ायदा
जहाँ का ज़र्रा ज़र्रा दास्ताने - खूँ कहता हो
जहाँ पर चीख़ती हों बेफरियाद बेबस सदायें
जहाँ पर खौफ़नाक़ माज़ी का साया रहता हो ।
मेरे दोस्त , मत झुका सिर ऐसी मज़ार पर
अगर चूमनी है तो चूम उस गरीब की दरगाह
जिसने देखा हो इन्सान को इन्सान की तरह
ख़ुद भी रोया हो जो हुआ कोई गैर तबाह ।
Kavi Deepak Sharma
All right reserved@Kavi Deepak Sharma
Posted By Kavyadhara Team
http://www.kavideepaksharma.co.in
http://www.shayardeepaksharma.blogspot.com
   
Reply With Quote