4th November 2016, 04:03 PM
“मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी और क्या उपन्यास, मैं जानती हूं, एक नाजायज बच्चे की तरह हैं। मेरी दुनिया की हकीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उनके वर्जित मेल से यह सब रचनाएं पैदा हुईं। जानती हूं, एक नाजायज बच्चे की किस्मत इसकी किस्मत है और इसे सारी उम्र अपने साहित्यिक समाज के माथे के बल भुगतने हैं।
मन का सपना क्या था, इसकी व्याख्या में जाने की आवश्यकता नहीं है। यह कम्बख्त बहुत हसीन होगा, निजी जिन्दगी से लेकर कुल आलम की बेहतरी तक की बातें करता होगा, तब भी हकीकत अपनी औकात को भूलकर उससे इश्क कर बैठी और उससे जो रचनाएं पैदा हुईं, हमेशा कुछ कागजों में लावारिस भटकती रहीं…”
-अमृता प्रीतम
"रसीदी टिकट से"
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.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
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