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Originally Posted by NakulG
~ग़ज़ल~
चीड़ के फूल हैं गिरे हर सू,
और ये माज़ी के सिलसिले हर सू।
सुस्त से पड़ गए सभी बादल,
पर्वतों पर घिरे घिरे हर सू।
उंघते आसमां के कैनवस पर,
रंग कितने ही थे भरे हर सू।
खींच कर धुंध का ये परदा सा,
पेड़ सोये खड़े-खड़े हर सू।
बाग़ है या है यह चुनर तेरी,
फूल ही फूल हैं खिले हर सू।
जाग कर भी वो ख़्वाब जारी है,
मुझको बस तू ही तू दिखे हर सू।
~नकुल गौतम
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waahhh kyaa baat hai kyaa khoob nazara pesh kiyaa aapne nakul jii...
laajawaab kar diyaa aapke ehsaason ne mujhe...
kai baar padh gayaa aapki ye taazatareen ghazal , muhabbaton se bhari daad qubool kijiyega...
shukriyaa
shaad.....