Dosto Namaste,
Kal bade dino baad SDC pe aana hua aur "Aru" ji ki ek purani post padhi " Ek cup chai, dhimi dhimi si barish, thodi si fursat, bus aur kya chahiye teri yadoon ko, daudi chali aati hain...............padh kar kuch khayal mere dimag me bhi daude chale aaye......umeed hai aapko pasand aayenge
जख्म फिर, अपने सिए, चले जा रहा हूं,
जलाते सियाह, रातों मे दिए, चले जा रहा हूं।
धिमी धिमी सी बारीश, ये सफर, ये चाय की पयाली,
चुस्कियाॅ दो चार लिए, चले जा रहा हूं।
न जाम, न खुशी, न महफिल अपनी मगर ,
मुस्कुराता, मैं गम पिये, चले जा रहा हूं।
न साथी, न हमसफर, न जमाना अपना तो क्या,
जमाने भर को, अपना किए, चले जा रहा हूं।
आखरी दम पर सही, हासिल मेरा, सपना होगा,
बदगुमाॅ, यूॅ जिए, चले जा रहा हूं।
मक्सद आसाॅ नही, जिन्दगी का तो क्या "भूषण" ?
होॅसले नए, हर पल दिए, चले जा रहा हूं।
"भूषण"