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Originally Posted by puregold
मंजिल
मंजिल की चाहत में हम आशियाने से निकले ....
अपनों के दिल आखिर क्यूँ न पिघले
माता-पिता को है कितनी आशाएं हमसे
कुछ बनने की कुछ करने की उम्मीद हमसे
ज़िन्दगी की इन राहों पर हमे भी यकीन खुद पे ....
आशियाने से दूर........
अब तो नयी जगह नए लोग थे
आँखों में कुछ सपने और कुछ दोस्त थे
दोस्तों की दोस्ती ने कभी रोने न दिया
मंजिल पाने की उम्मीद को कभी टूटने न दिया
अनजाने भी बन रहे थे अपने
पूरे हो रहे थे हमारे कुछ सपने
जैसे अनजानी राहों पर हमने चलना सिख लिया
हर परस्तिथियों में खुद को ढालना सिख लिया.....
इसी सोच में हम जिए जा रहे हैं
ज़िन्दगी में हम अपनी बढ़े जा रहे हैं
मंजिल भी मुझको अब नज़र आ रही है
उसको पाने की मेहनत हम किये जा रहे हैं......
don't stop until u reach ur destination...........
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Hi puregold ji...according to me its great thought....Thanks for nice sharing.........good luck !!!!!!!!!!!