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मयंक की मुन्तजिर रौशनी के लिये -
23rd August 2009, 08:11 PM
तेरे दाग से मेरे दाग मिलते चले गये
आज दुनिया के लबो पर बदनाम है वो.
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शिकस्त का नशा है तेरी आखो मे
आज मैकश ही अपने मै से आये है.
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गर हूं मुकिल तेरे दर का हासिल
आज दे टुकडे मे मै तेरे काबिल.
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मयंक की मुन्तजिर रौशनी के लिये
वो देते है लमहा हौसलो के लिये.
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अब मै नादान सा मयखाने के करीब हूं
ख्वाईश के दर निकला हुआ एक रकीब हूं.
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मुन्तजिर नादान सा आंखो मे मैकश के
राज रखे है मै से मै तक दिलकश से.
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कर मुन्तजिर मेरे दर्द को अपने लब से
मै तो हर सदी मे ठहरा हू कब से.
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तेरे दाग से मेरे दाग मिलते चले गये
आज दुनिया के लबो पर बदनाम है वो.
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शिकस्त का नशा है तेरी आखो मे
आज मैकश ही अपने मै से आये है.
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गर हूं मुकिल तेरे दर का हासिल
आज दे टुकडे मे मै तेरे काबिल.
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मयंक की मुन्तजिर रौशनी के लिये
वो देते है लमहा हौसलो के लिये.
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अब मै नादान सा मयखाने के करीब हूं
ख्वाईश के दर निकला हुआ एक रकीब हूं.
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मुन्तजिर नादान सा आंखो मे मैकश के
राज रखे है मै से मै तक दिलकश से.
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कर मुन्तजिर मेरे दर्द को अपने लब से
मै तो हर सदी मे ठहरा हू कब से.
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ajay saahab,
namaste:
aap ke is andaaz ne mujhe la-jawaab kar diya hai....
kahne bohat kuchh hai papr lafz nahii.n mil rahe hai.n...
daad qubool keejiye.. tah-e-dil se shukr-guzaar huu.n