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Originally Posted by shakuntala vyas
रिश्ते
रिश्ते मन के पंछी को केद कर जाते हैं
बहुत बैचेन और बेजान सा कर जाते हैं
आशाएं जगा, साँसों को क्यों रोक जाते है
वक़्त के साथ क्यों रिश्ते भी बदल जाते है
हम जान कर भी, इन में ही बंधते जाते हैं
मझदार में साथ छोडे, वो कस्ति जाते हैं
जब जब रिस्तो के समंदर में गोते लगते हैं
दूँढने जाते हैं ती पर खारा पानी पी आते हैं
रिश्ते भी वक़्त के साथ मिठास खो जाते हैं
रिश्ते जीवन को बहुत ही रिक्त कर जाते हैं
रिश्ते देते जख्म जो हर पल है रिसता
इन दुखों की चक्की में मन ही पिस्ता
डॉ शकुंतला व्यास
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shakuntala jii,
aapne zindagi ke ek bahut dard dene wale pehlu ko utha diya...maiN aapke likhe se sehmat hooN...dua bhi karta hooN ki kisi ko bhi ye pehlu na dekhna pade...meri dil se nikli daad qubuul kijiyega...