तन्हाई में जीवन बिताने की आदत पड गयी है, -
20th March 2010, 05:03 PM
नए और पुराने सभी प्यारें दोस्तों को आदाब, नमस्कार, सत-श्री-अकाल ........
एक नयी कोशिश के साथ..... उम्मीद है आप सब को ज़रूर पसंद आएगी........
आप सब से मिले प्यार का में तह दिलो शुक्रगुजार हूँ आशा रखता हूँ कि आगे भी आप सब मेरा ऐसे ही साथ देते रहेगें .....
इसी उम्मीद के साथ
आपका दोस्त..........राजीव शर्मा "राज"
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मुझे जिस्म से उठते दर्द के संग जीने की आदत पड गयी है
दुनियां के दिए ग़मों से लड़ने की आदत पड गयी है,
किसी की हसीं से, किसी की खुशीं से, मेरा कोई वास्तां नहीं
बेबस आँखों को आंसू बहाने की आदत पड गयी है,
पूछती है ज़िन्दगी, मुझे ज़िन्दगी की चाहत किसके लिए है
किसके लिए ये जहर पीने की आदत पड गयी है,
ज़ख्मों से चूर रहा, हालात के आगे मजबूर रहा
फूलों से शिकवा नहीं, काँटों के संग दिल लगाने की आदत पड गयी है,
घर मेरा अपनों ने जलाया, किनारे पे लाके किश्ती ने डूबाया
उजड़े हुए आशियाने की राख पे खुशीं मनाने की आदत पड गयी है,
ना सोने की थाली, ना चांदी की चम्मच, ना मखमल का बिस्तर
ना जाने कितने गरीबों को जमीं पर सोने की आदत पड गयी है,
कोई जब मेरे ज़ख्मों को कुरेदे, तो उफ़ ! सी निकलती है लबों से
जहाँ को भी ज़ख्मों पर नमक छिडकने की आदत पड गयी है,
हमारी मुस्कान गैरों के होंटों पर रही, ज़िन्दगी मे मार चोटों की सही
ज़माने के पीठ पर वार खाकर, अब हमें संभल जाने की आदत पड गयी है,
ये आग भी कितनी कमबख्त है, जो एक बार में हमें जलाती नहीं
क्योँ बार-बार इस आग में दामन जलाने की आदत पड गयी है,
किस के सहारे "राज" अपनी बची ज़िन्दगी गुजारें
तन्हा हूँ मैं, तन्हाई में जीवन बिताने की आदत पड गयी है,
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Last edited by Rajeev Sharma; 20th March 2010 at 05:07 PM..
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