उन्हें जाने दो -
21st June 2015, 02:04 AM
पेशावर स्कूल हमले से उठी टीस कुछ इस तरह कागज़ पर उतरी थी......
क्यों रोते हो-अब जाने भी दो- उन्हें जाना ही था,
रहते थे वो जहां- क्या इंसानो का वो ठिकाना भी था।
कभी बारूद बोया हो जहां के बाग़बानो ने,
उन बाग़ों की कलियों को कभी उजड़ जाना ही था।
जिन्हें मासूम बच्चों की भी न चीखें ही सहमाये,
खुदा, उन पत्थरों में रूहों को क्यों बसाना ही था।
वो दहशतगर्द हैं, बस वहशतों से है उन्हें मतलब,
कोई मज़हब तो बस बेबात का इक बहाना ही था।
कितना मासूम सा चेहरा था उस नाज़ुक से बच्चे का,
किसी कमज़र्फ की नज़रों में उसे पड़ जाना ही था।
वो तो कल रात को इक कब्र के कोने में जा बैठी,
वो अम्मी थी उसे तो लाल को लोरी सुनना ही था।
के तुम हो खुदा या नाखुदा अब तुम ही समझाओ,
दिया क्यों जनम इनको जब तुझे यूं बुलाना ही था।
कभी अम्मी कभी अब्बु टहलते छत पे आयंगे
बस इक इस आसरे पर ही उसे सितारा बन जाना ही था।
|