kuchh sher -
13th January 2009, 11:39 AM
पता वो भेजती है मुझे अपने हुज़ूर का
ओर साथ लिखती है कभी, ना आना इधर
उन्की महफ़िल मे बस एक हम ही खास है
युंकि एक हम ही लिबास मे है बाकि सब बे-लिबास है
बिस्मिल मेरे इश्क की बस इतनी उम्र हो
जिस दिन वो नज़र बदले कयामत की नज़र हो
गुजर गई ता-उम्र मेरी उन्की खिडकी तले
ओ जालिम खोल दे खिडकी वर्ना अब हम तो चले
खुश्बु सा चेहरा है उसका हर सु महकता है
मेरी नज़रो का दोष है ये, वो नूर सा चमकता है
उन्से अलग ये जिन्दगी मुझे कैसे गंवारा हो
दिलोजान धड्कन वही, उन बिन कैसे गुजारा हो
जो जा रहा है जाने दो गम ना कर
मोहब्बत सच्ची होगी तो लोट कर आएगा यहीं
अन्तिम पन्क्तियां
वतन के तन पे अगर कोई तन के आएगा
कसमे-वतन वो अपने तन पे फिर ना कभी तन पiएगा
|