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प्रकृति -
27th August 2010, 10:26 PM
नीली चादर ओढ़े,
तुम अंतरिक्ष की सीमा हो,
तुम अनंत, अरूपा हो,
तुम आसमान हो।
भोर के वक्त
तुम्हारी सुंदरता
निखर उठती है,
चारों ओर तुम्हारे चेहरे पर,
लालिमा छा जाती है।
पंछी तुम्हारी गोद में,
चहचहाने लगते है,
सूर्य की किरणें
तुम पर पूरी तरह,
हावी हो जाती है और
धरती खिल उठती है।
साँझ के वक्त
तुम्हारी सुंदरता,
दुगुनी हो उठती है,
सूरज डूब जाता है,
चाँद खिल आता है,
चारों ओर अँधेरा
का अधिकार हो जाता है
तुम्हारे आँचल में
सितारों की चमक रहती है,
रात को तुम्हारे आँगन में,
ग्रहों की रौनक रहती है।
तुम शायरों, कवियों का
प्रेरणास्रोत हो,
तुम देवी देवताओं का
निवास स्थान हो,
जी चाहता है, तुम्हें छू लूँ।
पर तुम तक कैसे पहुचू बन्धु बोलो तो ?।(nm)
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