ख़्वाबों की स्याही से जब भी हमने कुछ लिखना च -
24th July 2019, 05:49 PM
ख़्वाबों की स्याही से जब भी हमने कुछ लिखना चाहा
सामने आ गयी हकीकत, आ गया इक दोराहा l
राख ही है दुनिया में सब कुछ चाहे इंसा हो चाहे दौलत
फिर काहे को तेरा मेरा, क्या चौखट क्या चौबारा l
बस कहां चलता है खुद का खुद पर भी अक्सर, लेकिन
कोई बताये कैसे मिलें जब मिलना नहीं है दोबारा l
पाँव ज़मीं पे कस के रखना दुनिया में फिसलन है संभलना
डूब जाती है तूफां में कश्ती ग़र साहिल दे ना सहारा l
दर्द छुपा ले कितना ये दिल, आँखों में तो दिखता है
बह जाते ग़म आंसू बन के “यश” इसने जब भी चाहा l
(जसपाल)
Baghbaan
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