Ghar Ghar Ki Kahani -
26th August 2010, 09:51 AM
नई पोध पे आइ बहार
नए नए अब बन गये यार
सर फूटेंगे अब दो चार
ये अल्लाह की मर्जी है
नया ज़माना नई जवानी
शुरू होगी इक नई कहानी
जवानी जब हो जाए दीवानी
फिर, अल्लाह की मर्जी है
लड़का देखे लड़की मुस्काय
थोढ़ा हिचके थोढ़ा शर्माए
अच्छा चलो शादी हो जाए यही,
अल्लाह की मर्जी है
कुछ बरस अब कर ले मौज
फिर तो तंग करेगी फ़ौज
चढ़ सूली पे अब हर रोज
पर, अल्लाह की मर्जी है
सुबह से निकला शाम को आए
बीवी jhagrhe और चिल्लाए
बस यही कमा के घर को लाये
लग, अल्लाह की मर्जी है
चाहे देस हो या परदेस
बेटा जब लग जाए रेस
समझो ख़त्म हो गया केस
जुट, अल्लाह की मर्जी है
देख ये कैसा वक़्त का खेल
तेरी बन चुकी है रेल
नही रहा अब किसी से मेल
चुप , अल्लाह की मर्जी है
जोढ़ जोढ़ के ये सरमाया
कचरा हो गई तेरी काया
क्या माया का सुख पाया
रो , अल्लाह की मर्जी है
गाढ़े पसीने की थी कमाई
ओलाद ने इस पे आंख गढ़ाई
बुड्ढ़े ने क्या उम्र है पाई
क्या , अल्लाह की मर्जी है
इसने कही उसने न मानी
घर घर की है यही कहानी
अब कुछ कहना है बेमानी
सुन , अल्लाह की मर्जी है
भाई भाई में हो तकरार
चाहे दो हों चाहे चार
चलो बना ढालें दीवार
नहीं , अल्लाह की मर्जी है
रिश्ते हो गये धन के कर्जी
कोई न पूछे किसी की मर्जी
जो दिखता है सब है फर्जी
क्या , ये अल्लाह की मर्जी है
जब उतरे पटरी से गाढ़ी
काम न आए कोई यारी
जिन्दगी भर तू रहा "अनाढ़ी "
ये तो अल्लाह की ही मर्जी है
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