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Originally Posted by acharya_mj
Doston ek nayi ghazal le kar haazir hua hoon jo ki chhoti behr men hai,212/212/1212. ummid karta hoon aap ko pasand aayegi
इश्क़ मुझ को दगा देता रहा
खुद को में होसला देता रहा
दर्द मुझ को मिले जो गैरो से
फिर भी सब को दुआ देता रहा
थी महोब्बत मुझे बेइंतिहा
बेवफा को वफ़ा देता रहा
ज़ख्म सब फूल बन गये, तेरी
खुशबू की हवा देता रहा
दर्द हद से बढ़ा मेरा कभी
हंसी की मैं दवा देता रहा
उम्रभर इन्तजार था तेरा
कब्र से मैं सदा देता रहा
तू न आई नसीब था मेरा
रूह को यह वजा देता रहा
ग़म तुझे कोई भी न छू शके
उन को अपना पता देता रहा
अश्क बहते रहे निगाहो से
इश्क़ का फलसफा देता रहा
regards
Manish Acharya "Manu"
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bahut hi laaawaa peshkash manu bhai.......... ek zamaane ke baad aapko padhaa bahut khushi haasil ho rahi hai..... waahhhhhh
aate raha kijiye........... likhte rahiye.....
shaad.........