तुम जो प्यार का बीज
बो गयीं थी न
मेरे अरमानों की बारिश में
पौधा बन गया है
मुस्कुराहटों की कोपलें
फूटने लगी हैं
बहुत जल्दी इसपे हमारी
चाहत का फूल निकलेगा
कुछ दर्द भरे काटें
भी लगे हो सकते हैं
पर जब विश्वास की पत्तियों
से घिरे चाहतों के फूल वाले
अपने इस पौधे को
दूर से लहराते हुए देखोगी
तो दर्द के कांटे कहीं
भी नज़र नहीं आएंगे
एक हाथ में दिल उनके एक हाथ में खंजर था
चेहरे पे दोस्त का मुखौटा अजीब सा मंजर था
तुम जो प्यार का बीज
बो गयीं थी न
मेरे अरमानों की बारिश में
पौधा बन गया है
मुस्कुराहटों की कोपलें
फूटने लगी हैं
बहुत जल्दी इसपे हमारी
चाहत का फूल निकलेगा
कुछ दर्द भरे काटें
भी लगे हो सकते हैं
पर जब विश्वास की पत्तियों
से घिरे चाहतों के फूल वाले
अपने इस पौधे को
दूर से लहराते हुए देखोगी
तो दर्द के कांटे कहीं
भी नज़र नहीं आएंगे
Achchi kavita hai aru ji......................
Likhte rahiye..
Takecare
Madhu.
अर्ज मेरी एे खुदा क्या सुन सकेगा तू कभी
आसमां को बस इसी इक आस में तकते रहे
madhu..
kyaa baat hai aru bhai..... bahut gahraai hai aapki kavita me...
aisaa lag raha hai ksii magzine ki koi kavitaa padh rahaa hoon... daad pesh hain bhai.... aate rahen, likhte rahen...