जिस पर मुझे ज़रूरत से ज्यादा गुमान था- -
18th September 2008, 01:12 PM
dear Talkh Roshan
yeh Bhi Kavideepak Sharma Ka Creation Hain,kaise Bhool Gaye.
जिस पर मुझे ज़रूरत से ज्यादा गुमान था
दिल उस शख्स का बहुत बेईमान था
बिखरा हुआ पड़ा था एक साया उसके पास
कोई अजनबी नही वो मेरा अरमान था
कहकहों में बज्म के दब गई सिसकी मेरी
मामूली थी हस्ती मेरी ,बहुत छोटा निशान था
खुश था जिसे में फूंक कर मज़हबी जुनून में
बाद में मालूम हुआ वो मेरा मकान था
दोस्तों ने दोस्ती निभाई भी तो किस जगह
बस ज़िन्दगी से चार कदम शमशान था
भूख का कहीं कोई मज़हब ' दीपक' होता नही
काफिर के साथ खा गया जो मुसलमान था ।
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