Quote:
Originally Posted by Harash Mahajan
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शख्स वो फिर रूप बदल कर आने लगा,
मेरा राज़दाँ हैं मैं फिर धोखा खाने लगा |
काफिर तो है वो नजर मेरी मानती नहीं,
कैसा ये धुंआ मेरी आँखों पर छाने लगा |
मची है धूम गुलशन फिर से लुटेगा कोई ,
दिल मेरा अबकि फिर उसे आजमाने लगा |
उथल-पुथल हो रही है भीड़ मेरे उसूलों की,
लगता है दिल मेरा मुझे ही सताने लगा है |
चाहता हूँ नामुमकिन को मुमकिन बना डालूं ,
सच में शख्स वो फिर से गिडगिडाने लगा है |
________________हर्ष महाजन
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Koshish AchChhi Lagii ... KhayaaloN Ko Aor Saaf Karne Ki Zaroorat Nazar Aa Rahi Hai ........
Aap Se Humeshaa Behtar Kalaam Kii Ummeed Jo Rehti Hai .....
Aate RaheN ... Likhte RaheN .. Khush RaheN !