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sachcha ishk.......
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  (#1)
ISHK EK IBADAT
RADHE RADHE
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Love sachcha ishk....... - 10th October 2010, 02:16 PM

प्रस्तुत है एक अन्य कथानक ..........

कभी यों होता कि उनके आफिस से आने का समय हो जाता और मैं घर जाना चाहती थी किन्तु रफ्फो फूफू मेरा हाथ ना छोडती / अब मैं उन्हें कैसे समझाऊँ कि मेरे यहाँ आने से वो कितने खफा होते हैं / ऐसे वक्त में फिर साजिदा की अम्मी बुदबुदा उठातीं, " नामुराद कमबख्त बला की तरह चिपट गयी है बेचारी की जान को.... वह भी तो घर बाहार वाली है / हर वक्त तेरी वहशतनाक सूरत कहाँ तक देखे / "

( पूरी कहानी नहीं है अतः तनिक प्रकाश डालना चाहूँगा रफ्फो फूफू पर ..." रफ्फो फूफू को प्रथम बार देख कर मेरी चीख ही निकल गयी थी / खौफ के मारे मेरे हाथ पैर ठन्डे पड़ गए थे / मेरे सामने एक चुड़ैल खड़ी थी / उसका मुँह चील कौवों ने नोच खाया था / आँखों की जगह सुर्ख गड्ढे थे और नाक से ठोडी तक कहीं गोश्त और खाल न थी / ............... बगैर होंठो की हिलती हुई बत्तीसी देख कर मेरे पसीने छूट जाते थे / .......... अब जरा मैंने इत्मीनान से उन्हें देखा / उसके स्याह ( काले )बाल और सुडौल जिस्म पच्चीस तीस बरस से ज्यादा का ना था / गुलाबी गुलाबी सी रंगत थी / उनके हाथ तो इतने खूबसूरत थे कि ऐसे गुलाबी सुडौल हाथ केवल चुगताई की तस्वीरों में नजर आते हैं / ............ मेरे दिल में उनका एहतिराम (सम्मान ) बढ़ता ही जा रहा था / मैं सोचने लगी, ' ऐसे लोग दुनिया में कितने कम होते हैं जिनके चेहरे जल गए हों किन्तु दिल स्याह न पडा हो '/..... एक दिन मैं जब चलना चाहती थी तो उन्होंने मेरी साड़ी पकड़ ली और बोली, " तुम्हारी साड़ी बहुत महक रही है /"
- यह सेंट उन्होंने लाकर दिया है /
-नहीं.... हमसे मत छिपाओ ... यह तो प्यार की खुशबू है /' उनकी चिर परिचित बत्तीसी फ़ैल गयी /
- आपको इस खुशबू की बड़ी पहचान है ... तब तो हम भी आपका दुपट्टा सूघेंगे / ' मैंने उनका दुपट्टा थामना चाहा तो वे लरज कर पीछे हट गयी और बोली , " हमसे ऐसा मजाक मत करना वरना हम खफा हो जायेंगे / ")

घर आती तो वे खफा होते / उन्हें जाने क्यों रफ्फो फूफू इतनी बुरी लगती थी / अब तो मेरी सभी लापरवाहियों का इल्जाम रफ्फो फूफू पर लगाते / एक दिन मैं उनसे लड़ पडी, " आप तो उनसे ऐसे जलते हैं जैसे वो आपकी रकीब (प्रतिद्विन्दी) हो "/
उन्हें भी गुस्सा आ गया , " मैं खूब समझता हूँ ऐसी औरतों को / अब कोई मर्द तो उसकी सूरत पर थूकेगा भी नहीं इसलिए आपको अपने जाल में फांस रही है /"
"आप मुझे ज़लील औरत समझते है /" बेबसी के मारे मैं रो पडी /
उसदिन हम दोनों खूब लड़े / मगर यह हमारी पहली लड़ाई थी इसलिए उन्होंने मुझे फ़ौरन मना लिया / मैंने उसी दिन रफ्फो फूफू से कभी ना मिलने की कसम खा ली थी / आखिर उन्हें हथियार डालना पडा और तीन दिनों के बाद वह खुद मुझे जीने तक छोड़ने आये जो रफ्फो फूफू के सहन में खुलता था /

मुझे डर था कि तीन दिनों तक ना आने से रफ्फो फूफू ने ना जाने अपना क्या हाल किया होगा ( आज कल वो मेरे साथ थी दोपहर का खाना खाती थी अन्यथा अगली दोपहर तक भूखी ही रहती थी /) मुझसे बहुत खफा होंगी किन्तु वे हस्बे-आदत (स्वभावानुसार) उसी बेताबी से मेरी ओर दौड़ी /
- रफ्फो फूफू, मैं तीन दिन तक तुम्हारे पास नहीं आ सकी/ बात यह हुई कि......
-ऊँह, बात कुछ भी हो' ...उन्होंने मेरी बात काटते हुए कहा , " मैं जानती हूँ कि कोई आखिर मुझे क्यों पसंद करेगा / तुम्हारे मियाँ भी मुझसे मिलने पर खफा होते होंगे ?"
-नहीं, अल्लाह.... आप कैसी बातें करती हैं," मैंने हैरानी से यह बात कही और सोचने लगी कि इन्हें किसने बताया /
-मुझे इतना बेवकूफ मत समझो , नूरी! " आज वे कुछ अधिक संजीदा ( गंभीर ) हो रही थी ," मैंने हिमाकत में हमेशा चलती हवाओं को पकड़ने की कोशिश की है /"
- रफ्फो फूफू! मुझे मुआफ कर दीजिये! " मेरे अन्दर इससे अधिक कुछ कहने की ताब ना थी /
-मुआफी काहे की चन्दा! उन्होंने बड़े प्यार से मेरे कंधे पर हाथ रखा, " क्या मैं यह बात नहीं जानती कि तुम्हारे मियाँ क्या चाहते होंगे..... मुझे तुम इसी लिए अच्छी लगती हो कि कोई तुम्हे इतना चाहता है/"
-रफ्फो फूफू!' मैं चिल्ला पडी / " वह कौन जालिम था जिसने तुम्हारी आँखों में तेज़ाब दाल दिया था /" मैं सचमुच रो पडी थी / रफ्फो फूफू का दिन सचमुच कितना सरल और साफ़ था /
- पागल! यह तुमसे किसने कहा कि किसी ने मेरी आँखों में तेज़ाब डाला है ? अरे ... मैंने तो खुद अपनी आँखे फोडी हैं /"
-सच ?" मैं उछल पडी इस हकीकत से /
-हाँ! ' उनका पूरा बदन काँप रहा था , "तुम ज़रा सोचो कि जो हमारी जान भी हो और हमारी रूह भी, जिसकी मुहब्बत पर हमें अपने वजूद की तरह यकीन हो , वह अचानक बदल जाए .. तो.." उनकी आँखों के गड्ढों में जैसे खून उतरने को था, " नज़्म मेरी आँखों में बार बार झाँकता था/ रफ्फो! क्या बात है! तुम्हारी आँखों के अन्दर मेरी सूरत ही नज़र आती है /उसकी यह बात सुनकर मेरा जी चाहता कि मैं अपनी आँखों को कस कर बंद कर लूँ ताकि वह फिसल ना जाए / और फिर नज़्म मुझसे बदल गया......... / एक करोडपति की दौलत ने उसे खीच लिया / मुझे लोगों के कहने पर यकीन ना आता था / फिर उसने खुद आकर मुझसे कहा कि उसके अब्बाजान जबरदस्ती उसकी शादी वहाँ करवा रहे रहे हैं / यह सुन कर मैं चुप रही / मैंने उसकी दुल्हन के लिए खुद कपडे तैयार किये / रात रात भर जाग कर आँगन में गीत गाये/ जो चीज हमारे लिए नहीं उसके लिए हम क्यों रोयें? फिर दरवाजे पर शहनाईयाँ गूँज उठी जो हमेशा से मेरे कानों में बसी हुई थी /मैंने कितने हज़ार बार यह ख्वाब देखा था कि घर रोशनियों से जगमगा रहा है / आँगन में मीरासिने गा रही हैं / और नज़्म की बहने अपने जगमगाते दुपट्टे उसके सेहरे पर डाले उसे मसनद की तरफ ला रही हैं / तभी कोइ जोर से चिल्लाया.. " नज़्म की दुल्हन कहाँ है ?" और पान बनाते बनाते मैं रुक गयी / उसके बाद मैं अपने घर की तरफ तेजी से भागी / फिर सभी मुझे ढूँढने निकलें कि मैं नज़्म की दुल्हन देखूं / नज़्म खुद आया /
"मैं तुम्हारी दुल्हन नहीं देखूँगी / कहीं उसने मेरी आँखों में तुम्हे देख लिया तो ?" मैंने नज़्म से कहा /
यह सुन कर नज़्म चला गया मगर उसकी दुल्हन खुद अन्दर आ गयी / मैं घबरा कर भाई जान की डिस्पेंसरी में भागी और तेज़ाब की बोतल अपने चेहरे पर उड़ेल ली / " उफ्फ्फाह ... मुझे किस कदर सुकून मिला था उस दिन .." रफ्फो फूफू ने इत्मीनान से कहा ," जैसे मेरी जलती हुई आँखों में किसी ने बर्फ की डलियाँ (टुकड़े) रख दी हों जैसे कलेजे की आग पर किसी ने ठंडा पानी डाल दिया हो /"
- मगर रफ्फो फूफू, आँखे इतनी सस्ती तो नहीं होती कि एक सख्स के लिए बंद कर ली जाएँ " मैंने आखिर पूँछ ही लिया /
- मुझे आँखे जलाने से कोई तकलीफ नहीं हुई चन्दा! " उन्होंने बड़ी मुहब्बत से मेरे हाथ थाम लिए, " मैं अब भी अपना हर काम कर लेती हूँ, और फिर वह आँखे मेरी कहाँ रही थी जिनमे नज़्म बसा था /"
मैंने उनके ठंडे गुलाबी हाथ पकड़ लिए /" जाने नज़्म साहब आपके हाथ कैसे भूल सके होंगे ? सच्ची रफ्फो फूफू! मैं तो आपके हाथो पर मरती हूँ /"
-हाय अल्ला! यूँ न कहो भई! " वह खुश हो गयीं " कहीं यह हाथ मैं तुम्हे न दे दूं /"
फिर हम दोनों हँस पड़े /

(साभार: "बे-मसरफ हाथ" द्वारा: "जीलानी बानो" )
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Aapka Apna
Ishk


'इश्क' के बदले इश्क चाहना तिजारत है
इज़हार किससे करें महबूब तो दिल में है


email: rkm179@gmail.com
   
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  (#2)
naresh_mehra110
Anshumali
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13th February 2011, 04:53 PM

bahut umdaa story padhvaai aapne ... Rajinder Bhai !

Thanks for sharing ... !




YuuN Besabab Aansoo Aate NahiN
Lag Zaroor Koii Baat Dil Ko Rahii Hai ...

Fareb Kaa ChaDhtaa Bazaar Dekh
Insaaf Se Bastii Khaalii Ho Rahii Hai ...


---Naresh Mehra----
  Send a message via Yahoo to naresh_mehra110  
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mittal_pali
Webeater
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6th March 2011, 01:22 AM

nice story. thanks for sharing................................


Pali Mittal
   
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  (#4)
PREMCHANDJAKHMI
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PREMCHANDJAKHMI is on a distinguished road
 
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22nd April 2011, 12:39 AM

very emotional and full of pain
i really appreciate your work
   
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