|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
Registered User
Offline
Posts: 127
Join Date: Jun 2010
Location: rohini delhi
Rep Power: 16
|
स्मृति -
27th August 2010, 10:51 PM
उस नैनरस के स्मरण भर से ,
मेरे भाव बादल बन गए,
अश्रु झिलमिला उठे और,
स्वप्न काजल बन गए।
पाथेय पर आशाएं बिखरी,
लगा सूर्य क्षितिज से झाँकने,
देख पथ के जुगनू,नभ के तारे,
कुछ सोचकर, कुछ आंकने।
अपने आलिंगन में कर लिया,
जब वायु ने सुगंध को,
आश्रय मिला तेरे ह्रदय का,
मेरे मन स्वछन्द को।
अब भी है अंकित ,इस दृष्टि में,
वो कोमल छवि,वो नैनरस,
समय के पाथेय से,
चुरा रखा है मैंने हर दिवस.(nm)
|
|
|
|
|
volunteer
Offline
Posts: 723
Join Date: May 2010
Location: chandigarh
Rep Power: 24
|
28th August 2010, 08:10 PM
[QUOTE=ek pal;407635]
उस नैनरस के स्मरण भर से ,
मेरे भाव बादल बन गए,
अश्रु झिलमिला उठे और,
स्वप्न काजल बन गए।
पाथेय पर आशाएं बिखरी,
लगा सूर्य क्षितिज से झाँकने,
देख पथ के जुगनू,नभ के तारे,
कुछ सोचकर, कुछ आंकने।
अपने आलिंगन में कर लिया,
जब वायु ने सुगंध को,
आश्रय मिला तेरे ह्रदय का,
मेरे मन स्वछन्द को।
अब भी है अंकित ,इस दृष्टि में,
वो कोमल छवि,वो नैनरस,
समय के पाथेय से,
चुरा रखा है मैंने हर दिवस.(nm)
[/QUOTE ]nice sharing...........................
|
|
|
Posting Rules
|
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts
HTML code is Off
|
|
|
Powered by vBulletin® Version 3.8.5 Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
vBulletin Skin developed by: vBStyles.com
|
|