सोचता हूँ किस तरह पहुँचा हूँ मैं मुल्क-ए-अद -
20th April 2016, 04:13 PM
सोचता हूँ किस तरह पहुँचा हूँ मैं मुल्क-ए-अदम
कुछ रकीबों की दुवाएँ, यारों के कुछ हैं करम
क्या बताऊँ किस तरह, कैसे, कहाँ फिसले कदम
ख़्व्वाब से जागा हूँ कैसे, किस तरह टूटे भरम
इश्क़ भी करते नहीं वह, जाम भी भरते नहीं
क्या कहें हालत हमारी, होंठ सूखे, आँख नम
और क्या दोगे सज़ा मुझको मुहब्बत की, हुज़ूर?
बेवफा से प्यार कर बैठा हूँ मैं, क्या यह है कम?
कामयाबी का कहीं कोई नहीं नामोनिशाँ
फिर लगा बैठे हैं आँखें आसमाँ पर खुशफ़हम
लाख छोडी, फिर पहुँचती हैं लतें मुझ तक, ’भँवर’
खूब यह पहचानती होंगी मेरे नक्ष-ए-कदम
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