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Originally Posted by Firoz Sayyad
क्या वह अहसास था, एक अजीबसी चाहत हो जैसे
बदल यही गरजते थे, जैसे सारा आसमान भर आया था
ठंडी हवाकि लहरे, लहरोंमें यही दिलका मचलना
टपकती बुँदे, बूंदोंका टपकना जैसा किसीका मुस्कुराना
बारिश हो रही हैं, जमिनको भिगो रही हैं
एक एक बुंदका, बदनसे सिमटना जैसे दोहरी जिंदगी
एक नयापन, एक नया अंदाज़, एक नया अहसास
बारिशने भिगो दिया, जैसे सारी कायनात भीगे जा रही हैं
पनिका उमड़ना, जैसे ज़ारनोका बहते रहना
बारिश हो रही हैं, जमिनको भिगो रही हैं
फूलोंसे पत्तोंसे वह बूंदोंका सिमटना, रात की अँगड़ाईयोंमें चमकीले अजूबे
हवाकि लहरोंसे बूंदोंका फिसलना, जमीमे सिमटना
क्या यह अंदाज़ हैं, सारी कयनात्सी महक रही हो
यही ख्याल आये, यह बाहता पानी किसे जाकर मिले
खयालमें उमड़ना, यही वही दुनियामें खोये हुए रहना
बारिश हो रही हैं, जमिनको भिगो रही हैं
सारी दुनियाको भिगो दिया, बहते हुए रास्तो का पानी
हर चेहरेपे खुशियाली और, जैसे छाई हुई मुस्कराहटे
यह भी एक उसकी करमतसी, जिसने इसे बना दिया
हर मौसम का एक मौसम, बारिश का मौसम
बारिश हो रही हैं, जमिनको भिगो रही हैं
-- फ़िरोज़ सय्यद
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bahot khoob...............
likhte rahiye
Shaad...