जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी .....Kavi Deepak Sharma -
11th April 2009, 04:53 PM
जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी
जिस रोज़ हर चेहरा हँसता नज़र आयेगा
जिस रोज़ नंगे बदन कपड़ों से ढके होंगे
जिस रोज़ खुशियों में वतन डूब जायेगा
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .
जिस रोज़ किसानो के भरे खलियान होंगे
और रोज़गारशुदा वतन के नौजवान होंगे
जिस रोज़ पसीने की सही कीमत मिलेगी
इन महलों से बड़े जिस रोज़ इन्सान होंगे
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .
जिस रोज़ राह में कोई अबला न लुटेगी
जिस रोज़ दौलत से कोई जान न मिटेगी
जिस रोज़ यहाँ जिस्म के बाज़ार न लगेंगे
जिस रोज़ डोली दर से कोई सूनी न उठेगी
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .
ये हाथ पसारे मासूम बचपन हजारों
जिस रोज़ मुझे राह में घूमते न दिखेंगे
जिस रोज़ ज़र्द, पिचके वीरान चेहरों पे
भूख के नाचते - गाते बादल न दिखेंगे
उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना
मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना .
@Kavi Deepak Sharma
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( उपरोक्त रचना काव्य संकलन फलकदीप्ती से ली गई है )
सर्वाधिकार सुरक्षित @कवि दीपक शर्मा[/b][/font][/color][/b]
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