ओ चाँद ! -
21st November 2014, 05:03 PM
कुछ रोज मेरे झरोखे से भी नज़र आ ए चाँद ,
कुछ रोज मुझको भी बहला ए चाँद ,
ये दिल ही नहीं रूह भी धड़कती है,
मुझको भी ये एहसास दिला ए चाँद,
तमन्नाएँ हैं के आसमान तक
जा-जा के पलट आती हैं,
ये तितलियाँ कुछ दूर तो उड़ती है
फिर आसमान में ही बिखर जाती हैं,
कुछ तो शीतल कर मेरे दर-ओ-दीवार को
न ग़म की धुप ही छँटती है,
न बूँदें ही बरसती है,
एक अरसे से ये तपिश मुझे भीतर तक तपाती है।
- चाँद
Sachh bolne ka hausla to, hum bhi rakhte haiN lekin
Anjaam sochkar, aksar khaamosh hi reh jaate haiN.
- Chaand
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