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Originally Posted by rajinderseep
वह,
शामिआने के एक कोने से
अन्दर झांक रहा था
क्या चल रहा था वहां
भांप रहा था।
कुछ लोग इधर से उधर
कुर्सीआं उठा रहे थे
कुछ भीतर आने वालों को
बिठा रहे थे
तभी दूसरी तरफ से एक खास मेहमान
भीतर आया
लगभग सबने उसको
फूलों का हार पहनाया।
फिर बड़े ही अदब से उसे
मंच पे बिठाया।
कईओं ने कसीदे पड़े
शान में उसकी
कईओं ने गीत गाए
पहचान में उसकी।
अंतता उस मेहमान को भी
भाषण के लिए बुलाया
उन्होंने भी बहुत सी बातों के साथ
घोषणा पत्तर पढ़ सुनाया।
कहने लगे अब हमने सबके लिए
अति शुभ काम किआ है
अपने इलाके में सब के लिए भोजन का
इन्तज़ाम किआ है।
उसके कानो में भी
यह बात पड रही थी
सोई हुई उम्मीद जग खड़ी थी
कई दिनों से कुछ खाया नहीं था
भोजन के सुनते ही
भूख कई गुना बड़ी थी।
सोचा के जल्दी से भीतर चला जाऊं
अभी हुई घोषणा के मुताबिक
अपनी भूख मिटाऊं।
पर द्वार पर खड़े सिपाही ने
पीछे धकेल दिआ
ज़िद करता था इस लिए
डंडा पेल दिआ।
सब ने खाया
और खूब खाया
बच रही जूठन को
बाहर डिब्बों में गिराया।
जाते हुए लोग नेता का भाषण दोहरा रहे थे
सबके लिए किए भोजन के बंदोबस्त पे
इतरा रहे थे. .
और वह
झूठन के ढेर से कुछ कुछ
निबाले उठा रहा था
और धीरे धीरे अपनी भूख
मिटा रहा था।
रजिंदरसीप
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Mast ji ki baat ko main bhi dohrana chahoongi..jaise jaise padhti gayi ek tasweer banti gayi aur antata ankhein nam ho gayiin ..aapne ek aise pahlu ko apni nazm me jeevit kiya hai jise samaaj dekh kar undekha kar deta hai.....bahut asar daar bahut umda khayaal......meri dili daad qubool kariye..
Aise hee likhte rahein...
Regards
Madhu..