नरेश जी सलाम, ये ग़ज़ल अहेमद फ़राज़ साहब की है बहुत प्यारी ग़ज़ल है! आपने इसे सब के साथ बाँटा खुशी हुई! ये आपने अधूरी ही बाँट दी हम इसे पूरी कर देते हैं!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं! सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते है!
सुना है रब्त है उसको खराब हालों से सो अपने आप को बर्बाद कर के देखते है!
सुना है दर्द की घानक है चश्म ए नॅज़ उनकी सो हम भी उनकी गली से गुज़र के देखते है!
सुना है उसको भी है शेर ओ शायरी से शगफ़ सो हम भी मोजीज़े अपने हुनर के देखते है!
सुना है बोले तो बातों से फूल झरते है ये बात है तो चलो बात कर के देखते है!
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है सितारे बम ए फलक से उतर के देखते है!
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती है सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते है!
सुना है हश्र में उसकी ग़ज़ल से आँखें सुना है उसको हैरान दश्त बर के देखते है!
सुना है उसकी सिया चश्मगी कयामत है सो उसको सूरमा फ़रोश आह भर के देखते है!
सुना है उसके लाबो से गुलाब जलते है सो हम बाहर पे इल्ज़ाम धर के देखते है!
सुना है आईना तामसाल है जबी उसकी जो सदा दिल है उसे बन सवर के देखते है!
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है के फूल अपनी किबाए कतर के देखते है!
बस एक निगा से लूटा है काफिला दिल का सो परवान तमन्ना भी दर के देखते है!
सुना है उसके शाबिस्तान से मटसिल है वहशत मकीन के भी जलवे उधर देखते है !
रुके तो गर्दिशे उसका तोफ़ करती है चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते है!
कहानिया ही सहीं सब मुबलघे ही सहीं अगर वो खवाब है तबीर कर के देखते है!
अब उसके शहर में ठहर के कुछ कर जाएँ फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते है!
Faisle taqdeer ke lakeere badal nahi sakti
Eh insaan teri uske aage hargiz chal nahi sakti
Aaj tu zameen par hai kal zameen mein hoga
Maut tujhe aani hai har roz tal nahi sakti
Last edited by Parwaazz; 21st June 2010 at 02:19 AM..