Yeh Khabar haalaaki purani hai kuchh roz magar boori khabar hai, Mashhor shaayar sudarshan faqeer jee ka intkaal ho chukaa hai aur hamney ek aur achaa shaayar gavaa diyaa hai, bhagwaan unke aatma ko shaanti de aur unhe moksha pradaan kare yahi duaa hai.
taken from
http://www.hindimedia.in/content/view/1263/43/
हमारे बीच से अचानक एस ऐसा शायर चला गया जिसके बारे में कभी कुछ न जाना, न पढ़ा. मगर जिसके शब्द कभी जगजीत सिंह की आवाज से कभी बेगम अख्तर की आवाज़ से तो कभी मुकेश की आवाज़ में बचपन से लेकर आज तक कानों में गूंजते रहे। देश के अखबारों से लेकर खबरिया चैनलों को तो खैर ऐसे लोगों के बारे में न कुछ पता होता है न कभी जानने की कोशिश की जाती है। मगर आज सुबह सुबह अचानक सहारा समय पर पुण्य प्रसून बाजपेयी को कुछ वोलते सुना तो रुक गए , क्योंकि ऐसा बहुत कम होता है कि आप पुण्य प्रसून बाजपेयी को कोई खबर सुनाते देखें तो आपको निराश होना पड़े। चैनलों और रिपोर्टरों से लेकर ऐंकरों की भीड़ में पुण्य प्रसून बाजपेयी साहित्य और संस्कारों से जुड़ी खबरों को देने की भरपूर कोशिश करते हैं, तो पुण्य प्रसून बाजपेयी सुदर्शन फाकिर पर बात कर रहे थे, जिनका 73 साल की उम्र में जालंधर में निधन हो गया। जगजीत सिंह ने शोहरत की जिन बुलंदियों को छुआ है उसमें सबसे बड़ा योगदान सुदर्शन फाकिर का रहा है। सुदर्शन फाकिर और जगजीत सिंह डीएवी कॉलेज जालंधर में साथ पढ़ते थे। फाकिर साहब ने अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में एम किया था। दोनों एक दो साल के अंतराल से 60 के दशक में मुंबई आए और इसके बाद फाकिर की कलम ने जगजीत सिंह को जगजीत सिह बना दिया। वे अपने पीछे पत्नी सुदेश बेटा मानव, बहू इशिता और पौत्र आर्यमान साथ ही देश और दुनिया में फैले लाखों-करोड़ों प्रशंसकों को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ गए।
सुदर्शन फाकिर ने अपने कैरियर की शुरआत रेडिओ स्टेशन जालंधर से की थी। एक बार बेगम अख्त़र को रेडिओ स्टेशन पर अपना गायन पेश करने आना था, और शाकिर साहब को उनको रेडिओ स्टेशन तक लाने का काम सौंपा गया था। रास्ते में ही फाकिर साहब ने बातों बातों में बेगम अख़्तर
'हम तो समझे थे कि बरसात मे बरसेगी शराब
आई बर्सात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया',
सुनाया तो बेगम अख्तर ने उस कार्यक्रम में फाकिर साहब की यही गज़ल सुनाकर ज़बर्दस्त वाहवाही लूटी। फाकिर साहब की ख्याति साठ के दशक मे मुंबई तक पहुँची, यह वह दौर था जब लिखने वालों की ख्याति मुंबई तक पहुँच जाती थी और मुंबई की फिल्मी दुनिया में बैठे लोग देश भर में छुपे ऐसे लोगों को अपनी फिल्मों में लेखक या गीतकार के रूप में मौका देते थे। स्वर्गीय मदन मोहन ने सुदर्शन फाकिर के बारे में सुना तो उन्होने फाकिर साहब को मुंबई बुला लिया। लेकिन उनको पहला गीत लिखने का मौका दिया जयदेव ने।
फाकिर साहब ने फिरोज खान की फिल्म 'यलगार' के संवाद और गीत भी लिखे और इस फिल्म का नाम भी उन्होंने ही सुझाया था। इस फिल्म का गीत 'आखिर तुझे आना है, जरा देर लगेगी' संजय दत्त पर फिल्माया गया था। गुरदास मान की फिल्म 'पत्थर दिल' का गीत 'जग में क्या था, रब से पहले, इश्क था शायद सबसे पहले' भी फाकिर साहब ने ही लिखा था। एनसीसी की परेड में गाया जाने वाला गीत हम सब भारतीय हैं-फाकिर साहब ने ही लिखा था। फिल्म दूरियाँ और प्रेम अगन से लेकर कई हिट फिल्मों के गीत भी उन्होंने लिखे थे।
किसी फनकार का परिचय उसकी कलम और उसका फन ही होता है। आपने हजारों बार सुदर्शन फाकिर साहब को रेडिओं, टीवी और जगजीत सिंह साहब से सुना होगा मगर शायद आपको इस बात का अहसास कभी नहीं हुआ होगा कि इन शब्दों का चितेरा कौन है, कौन हे वो जादूगर जो इतनी सहजता और सरलता से एक आम आदमी के दर्द को बयाँ करता है।
हम उनको श्रध्दांजलि के रूप में उनकी ही लिखे गीत और गज़लें उनको पेश कर सकते हैं। किसी शायर और गीतकार के लिए इससे बड़ी श्रध्दांजलि और क्या हो सकती है। हमें अफसोस इस बात का भी है कि जिस शख्स की लिखी गज़ल गाकर जगजीत सिंह को पूरी दुनिया में ख्याति मिली, पहचान मिली उन्होंने कभी किसी मंच से यह कहने का साहस नहीं किया कि जिस शायर का कलाम वे गा रहे हैं वो कौन है। इस मामले में शुभा मुद्गल को मानना होगा वे जब भी कोई गीत पेश करती हैं उस गीत के गीतकार का नाम कई बार पूरे सम्मान से लेती है और बार बार उसको याद करती है। अगर जगजीत सिंह जैसे ख्यातिप्राप्त लोग अपने कार्यक्रमों में सुदर्शन फाकिर जैसी शख्सियतों का परिचय दिया करे तो इससे जगजीत सिंहजी का कद तो बढ़ेगा ही उनके सुनने वाले उस असली फनकार से भी परिचित हो सकेंगे, जिसके बारे में शायद उनको कभी जानने को नहीं मिल सकता है।
प्रस्तुत है फाकिर साहब की कुछ अमर रचनाएं
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्*ती वो बारिश का पानी ।।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,
वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,
वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,
वो पीतल के छल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना,बना के मिटाना,
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,
न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी ।
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यों है
ज़ख़्म हर सर पे, हर हाथ में पत्थर क्यों है
— सुदर्शन फ़ाकिर —
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझको अहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
मेरे रुकने से मेरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालों
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है ‘फ़ाकिर’
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी।
---— सुदर्शन फ़ाकिर —
दिल तोड़ दिया
कुछ तो दुनियाकी इनाया़त ने दिल तोड़ दिया
और कुछ तल्ख़ी-ए हालात ने दिल तोड़ दिया
हम तो समझे थे कि बर्सात मे बरसेगी शराब
आई बर्सात तो बर्सात ने दिल तोड़ दिया
दिल तो रोता रहे और ऑखसे ऑसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रवायात ने दिल तोड़ दिया
वो मेरे है मुझे मिल जाऎगे आ जाऎगे
ऐसे बेकार खय़ालात ने दिल तोड़ दिया
आपको प्यार है मुझसे कि नही है मुझसे
जाने क्यो ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया
पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम
पत्*थर के ख़ुदा पत्*थर के सनम पत्*थर के ही इंसां पाए हैं
तुम शहरे मुहब्*बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं ।।
बुतख़ाना समझते हो जिसको पूछो ना वहां क्*या हालत ह
हम लोग वहीं से गुज़रे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं ।।
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहां
सहरा में खु़शी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं ।।
होठों पे तबस्*सुम हल्*का-सा आंखों में नमी से है 'फाकिर'
हम अहले-मुहब्*बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं ।।
ज़ख़्म जो आपकी इनायत है
ज़ख्म़ जो आप की इनायत है इस निशानी को क्या नाम दें हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को क्या नाम दें हम
आप इल्ज़ाम धर गए हम पर एक एहसान कर गए हम पर
आप की ये मेहरबानी है मेहरबानी को क्या नाम दें हम
आप को यूं ही ज़िन्दगी समझा धूप को हमने चांदनी समझा
भूल ही भूल जिस की आदत है इक जवानी को क्या नाम दें हम
रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो गु़बार सा देखा
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबां निकला बेज़ुबानी को क्या नाम दें हम
regards
manu