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Originally Posted by zarraa
किसी पत्थर का भी असर ना हुआ
इस शजर पर कोई समर ना हुआ
दर्द पाया तो चैन आया है
बेहिसी में मेरा गुज़र ना हुआ
यूं ही रूदाद-ए-ग़म नहीं पूछो
कि बयां इसका मुख़्तसर ना हुआ
क़तरे क़तरे से है बना दरिया
शुक्र है हर कोई गुहर ना हुआ
उसके दर तक पहुंच गया हूं मगर
ख़त्म मंज़िल पे ये सफर ना हुआ
बात करते तो किसलिए करते
जब ख़मोशी का भी असर ना हुआ
तुम भी ग़ाफ़िल तो इस कदर न हुए
मैं भी मसरूफ़ इस कदर ना हुआ
शुक्रिया हसरत-ए-कू-ए-जानां
लामकानी में दर-ब-दर ना हुआ
साथ में नौहागर को ले आना
जो रज़ामंद चारगर ना हुआ
मेरा दुश्मन है कैसे रोएगा
दुख यक़ीनन उसे वगरना हुआ
मैंने सीने में दिल रखा “ज़र्रा”
चाहे गर्दन पे मेरी सर ना हुआ
- ज़र्रा
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Kya baat hai zaara ji.... Har ek lafz aapne aap me laajawab hai. Sukriya ise pesh karne ka liye....