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Originally Posted by Chaand
वो जब मेरे पॉकेट, मेरे फ़ोन, मेरी डायरी
मुझसे नज़रें बचाकर खंगालती है,
तो मुझे गुस्सा नहीं आता
में उससे शिकायत भी नहीं जताता,
ये सोचकर के वो शायद,
मुझे अपना समझने लगी है,
अबतक तो इस रिश्ते को स्वीकार भी नहीं करती थी,
मुझसे और मेरे वुजूद से कुछ फासले से गुजरती थी,
इन फासलों को अब वो आहिस्ता से मिटाने लगी है,
चलो देर से ही सही, वो पास तो आने लगी है!
- चाँद
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Umdaa khayaal huye hai chaand bhai yunhi likhte rahiYeGaa