माँ बाबूजी ने घर नहीं महल बनवाया था
बाबूजी का पसीना सीमेंट में मिला था
हिम्मत ईंट और सरिया में
छत माँ के गहनों से बनी
और बच्चों का कमरा
ओवरटाइम करके बनवाया था
बाबुजे जब भी बाज़ार जाते थे
थैले में थोड़ी से खुशियां ले आते थे
माँ उसमे प्यार दुलार मिला देती थी
और हम त्यौहार मना लेते थे
फिर हम इतने बड़े हो गए
अपने पैरों पे खड़े हो गए
इच्छाएं हमारी फिर और बढ़ने लगी
थैले की खुशियां कम पडने लगी
साल बीते सदस्य बढ़ने लगे
और फिर एक दुसरे से झगड़ने लगे
अब वो ही पुराने किस्से होंगे
घर के फिर दो हिस्से होंगे
एक दिन बच्चे क़यामत ले आये
बाबूजी के महल में अदालत ले आये
जब कहना सुनना सब हो गया बेकार
खिंचवा दी बाबूजी ने ही आँगन में दीवार
अब एक भाई इधर एक भाई इधर रहता है
बाबुजी का थैला उसी दीवार पे लटका रहता है
बाबुजी अब उस थैले में खुशियां नहीं लाते
अब हम साथ मिलकर त्यौहार नहीं मनाते
एक हाथ में दिल उनके एक हाथ में खंजर था
चेहरे पे दोस्त का मुखौटा अजीब सा मंजर था
माँ बाबूजी ने घर नहीं महल बनवाया था
बाबूजी का पसीना सीमेंट में मिला था
हिम्मत ईंट और सरिया में
छत माँ के गहनों से बनी
और बच्चों का कमरा
ओवरटाइम करके बनवाया था
बाबुजे जब भी बाज़ार जाते थे
थैले में थोड़ी से खुशियां ले आते थे
माँ उसमे प्यार दुलार मिला देती थी
और हम त्यौहार मना लेते थे
फिर हम इतने बड़े हो गए
अपने पैरों पे खड़े हो गए
इच्छाएं हमारी फिर और बढ़ने लगी
थैले की खुशियां कम पडने लगी
साल बीते सदस्य बढ़ने लगे
और फिर एक दुसरे से झगड़ने लगे
अब वो ही पुराने किस्से होंगे
घर के फिर दो हिस्से होंगे
एक दिन बच्चे क़यामत ले आये
बाबूजी के महल में अदालत ले आये
जब कहना सुनना सब हो गया बेकार
खिंचवा दी बाबूजी ने ही आँगन में दीवार
अब एक भाई इधर एक भाई इधर रहता है
बाबुजी का थैला उसी दीवार पे लटका रहता है
बाबुजी अब उस थैले में खुशियां नहीं लाते
अब हम साथ मिलकर त्यौहार नहीं मनाते
Bahut umdaa aru bhai.....likhte rahiye
Qasid
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नाम-ए-वफ़ा की जफ़ा बताएं
क्या है ज़हन में क्या बोल जाएँ
रफ़्तार-ए-दिल अब थम सी गयी है
'क़ासिद' पर अब है टिकी निगाहें