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Originally Posted by rajveeer
दोस्तों एक अरसे के बाद एक नज़्म के साथ हाज़िर हूँ ,उम्मीद है आपको पसंद आएगी....
कोई तो निशाँ बाक़ी होगा
तेरी दहलीज़ पे मेरे पाँव का
किसी गिलास पे
मेरे होंठों की लरजि़श आज भी क़ायम तो होगी
मेरी साँसों की गरमी
आज भी जाड़े में तुझे गुदगुदाती तो होगी
तेरी ज़ुल्फ़ों को आज भी
मेरी उँगलियों की आदत तो होगी
तेरे बिस्तर की कोई तो सिलवट
मेरे होने का एहसास करवाती होगी
मैंने दी थी तेरे दिल पे दस्तक कभी
तेरे जिस्म को आज भी
मेरे स्पर्श का एहसास तो होगा
मैं हवा का झोंका तो नहीं था
मैं आवारा सा लम्हा तो नहीं था
इक हक़ीक़त था मैं
मैं कोई सपना तो नहीं था..मैं कोई सपना तो नहीं था....Raj...
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bahot sundar peshkash raj ji...... muddat ke baad ko padha to behad khushi huii....
aate rahen.. likhte rahen
Shaad....