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Originally Posted by brijbhan singh
गिर जाने से पहले सँभलते है
उनके अंदाज हर पल बदलते है
उनके वादे भी दिल्ली की सड़कों जैसे हैं
हर गली हर मोड़ पर टूटे हुए मिलते हैं
कहते है तुम हमारे लायक नही हो
हम कहते है आखिर कीचड में ही तो कमल खिलते है
उनकी सूरत की तो है दीवानी दुनिया
और हम उनकी सादगी पर मरते है
नुमाइश हो गई हमारी मुहब्बत की महफ़िल में यारों
आखिर फिर कहाँ इश्क़ के कद्रदान मिलते है
अहमियत देते है वो सूरत को सीरत से पहले
बस इसलिए इजहार करने से ठिठकते है
ब्रज की मुहब्बत न मुकम्मल न हो पायेगी इस जन्म में
उन्हें पाने के लिए ही सही चलो जरा जल्दी से मरते है
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bahut khoob ehsaas brij bhai....umdaa