अपना वतन -
10th September 2010, 11:29 PM
दोस्तों एक छोटी सी कोशिस कि है कहानी लिखने कि, अगर ये कोशिस आपको पसंद आती है तो इसका अगला भाग भी जल्द ही प्रस्तुत करूंगा धन्यवाद !
आज पुरे गाँव में सिर्फ एक ही चर्चा थी ! और एक ही नाम सभी लोगों की जुबान पर था सतपाल ! पूरा गाँव उसके वापस आने से खुश था ! लगभग १२ साल बाद सतपाल अपने देश लौटा था ! उसकी बुआ जिसकी कोई औलाद न थी पति के गुजर जाने के बाद अपने भाई के यहाँ रहने आ गई थी ! सतपाल को वो सगे बेटे से भी ज्यादा चाहती थी ! १२ साल बाद सतपाल को देख उसकी सुनी पथराई आँखों में एक ख़ुशी की लहर लौट चुकी थी !
१२ साल पहले सतपाल इन्ही गलियों में उधम मचाता फिरता है ! सतपाल और अजीत दोनों गहरे दोस्त थे एक साथ स्कूल जाना एक साथ उधम मचाना ! पढने लिखने में भी कुछ ख़ास दिल नहीं लगता था दोनों का ! सिर्फ पास भर हो जाये तो वही उनके लिए तीज त्यौहार सा दिन होता ! आपस में जितनी जल्दी दोनों लड़ते झगड़ते उतनी जल्दी सुलह भी हो जाती दोनों में ! एक दुसरे के बिना बिलकुल अधूरे थे ! पुरे गाँव में इनकी जोड़ी राम लखन की जोड़ी कहलाती थी ! सतपाल देखने में साधारण कद काठी का था ! गहुआ रंग, बड़ी बड़ी आँख, लम्बी नाक, और चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट लिए रहता था ! दसवी के बाद दोनों ने पढाई छोड़ दी ! अजीत अपने पिता के साथ खेती बाड़ी में हाँथ बटाने लग गया और वहीँ सतपाल के पास करने के लिए कोई काम नहीं था ! पिताजी की नौकरी ख़राब स्वास्थ के कारण छुट गई थी ! एक पुराना मकान था कर्स्बे में, जिसके किराये से गुजरा चल रहा था ! सतपाल अपने पिता का कन्धा न बन कर एक पेट बन कर रह गया था !
कई महीने गुजर गए सतपाल और अजीत जब भी खाली वक़्त मिलता तो नहर के किनारे मिलते थे ! इन दिनों सतपाल कुछ परेशान सा, कुछ गुमसुम सा रहने लगा था ! अजीत के लाख पूछने पर वो कुछ नहीं कहता बस खामोश हो कर बात को टाल दिया करता ! एक दिन अचानक ही अजीत को खबर मिली की सतपाल विदेश जा रहा है ! उसके समझ में कुछ नहीं आया की ये सब कैसे हुआ ! जब उसका गुजरा बड़ी मुस्किलो से चल रहा था तो विदेश जाने के लिए पैसे कहाँ से आये ! और विदेश में जाकर वो करेगा क्या ? अपना गुजरा कैसे करेगा ! मगर जिसकी किस्मत मैं जो लिखा होता है वही होता है ! और एक दिन सतपाल अपने सपनो के साथ विदेश चला गया !
उसके विदेश चले जाने पर अजीत अकेला पड़ गया ! अपने दोस्त को याद करके बुझा बुझा सा रहने लगा ! एक दिन पता चला की सतपाल के पिताजी की माली हालत बहुत बिगड़ चुकी है ! दाने दाने को मोहताज़ हो गए ! दोस्ती का फ़र्ज़ अदा करने वो सतपाल के पिता के घर पंहुचा, थोड़ी देर की बात चीत मैं पता चल गया की उनका वो पुराना मकान बिक चूका है ! अजीत को ये समझते देर न लगी कि सतपाल विदेश कैसे गया है ! आमदानी का कोई जरिया नहीं रहा ! आज लाला के पास जेवर गिरवी रख कर थोड़े से रूपए मिल गए मगर ये भी कब तक साथ देंगे ! देखते देखते ३ साल गुजर गए सतपाल के पिता लाला की डयोढ़ी पर ही बही खाता लिखने का काम करने लगे ! खाने के लिए मुट्ठी भर आनाज मिल जाता था, उसमे ही उनका, सतपाल की माँ और उनकी विधवा बहन का गुजरा किसी तरह से होने लगा था ! एक दिन सतपाल की माँ अपने बेटे के आने की आस लिए स्वर्ग सिधार गई ! गाँव वालो ने सोंचा की हो न हो सतपाल अपनी माँ के अंतिम संस्कार के लिए जरूर आएगा ! मगर उम्मीद व्यर्थ थी ! सतपाल नहीं आया ! गाँव में तरह तरह की बाते होने लगी कुछ तो ये कहने लगे की ऐसे बेटे का होना न होना तो बराबर ही है ! अजीत ने एक दिन देखा सतपाल के पिता नए लिबास पहने कहीं जा रहे थे उससे रहा न गया उसने पूछ ही लिया !...
" क्या बात है चाचा बड़े खुश लग रहे हो, और आज कहाँ सज धज कर निकले हो, क्या बात है कोई लाटरी लग गई है क्या ?"
चाचा जी ने सीना चौड़ा करते हुए पुरे गर्व से कहा
" हाँ यही समझो लाटरी से कम भी नहीं है ! अपना मकान वापस खरीद लिया है और अब ज़मीन खरीदने जा रहा हूँ ! सतपाल ने विदेश से पैसे भेजे है "
ये कहते हुए उनके चेहरे पर चमक कि आभा दूर से दिखाइ दे रही थी ! बहुत खुश थे बेटे कि कामयाबी पर आज जिसे सारा गाँव कोसता था उसने अपने पिता का मान रख लिए था ! और हर महीने मनियाडर से रूपए भेजता रहता था !
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा और आहिस्ता आहिस्ता सतपाल के पिता बड़े किसानो में गिने जाने लगे ! सारे गाँव में मान सम्मान मिलने लगा, मगर रह रह कर बेटे के पास न होने का दुःख सताता रहता ! मन ही मन कुंठित हो रहे थे ! मन ही मन सोंचते कि काश बेटा यहाँ होता तो ये लाठी कि जगह बेटे के कंधे का सहारा लेकर चलता तो सीना और भी गर्व से चौड़ा हो जाता ! सतपाल के पैसे भेजने का ये सिलसिला लगातार यूँ ही चलता रहा ! देखते ही देखते १२ साल कब गुजर गए पता ही नहीं लगा ! इधर अजीत ने शादी कर ली, उसकी आमदनी भी बहुत अच्छी तो नहीं पर पुरे परिवार का गुजर बसर अच्छे से हो जाता था ! सतपाल के पिता आज अपने बेटे के मनीऑडर आने का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से कर रहे थे ! आसमान का सूरज डूब गया था और उसके साथ साथ सतपाल के पिता का इंतज़ार का सूरज भी डूब गया ! आँखों ने दूर से किसी परछाई को आता महसूस किया, जैसे जैसे परछाई का धुन्द्लापन साफ़ होता गया वैसे वैसे सतपाल के पिता कि आँखों में चमक बढ़ने लगी, आँखों से आंसूओं कि बुँदे छलक पड़ी जब देखा सतपाल उनके सामने खड़ा है ! उसकी वेश भूसा बदल चुकी थी ! देखने में बिलकुल अंगेजी बाबु लग रहा था !
१२ साल के बाद सतपाल अपने वतन लौट चूका था ! सारे गाँव में सिर्फ उसकी ही चर्चा हो रही थी ! सभी गाँव वाले सतपाल से मिलने आ रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे कि गाँव में बैसाखी का मेला लगा हो ! और अजीत इस सोंच में था कि वो सतपाल से मिलने कैसे जाये ! वो तो बिलकुल बदल गया होगा, मुझ जैसे किसान से मिलेगा भी या नहीं ! उससे बात कैसे करूंगा मुझे तो अंग्रेजी आती ही नहीं वो तो बिलकुल ही इंग्लिश बाबु बन गया होगा ! ये सोंच कर अजीत रह गया कि आज सतपाल किस बुलंदियों को छु रहा है और मैं वहीँ का वहीँ रह गया ! अजीत के इसी कशमकश में सारा दिन गुजर गया और वो उससे मिलने न जा सका !
अगले दिन अजीत अपने खेतो में काम कर रहा था ! दोपहर का सूरज झुलसा देने वाली आग उगल रहा था ! अजीत के ज़हन में अभी भी सतपाल ही घूम रहा था कि वो उसका सामना कैसे करेगा ! पसीने में तरबतर अजीत थोडा सुस्ताने के लिए खेत के पास बने एक झोपड़े में चला गया ! अभी पानी पी कर उसने अपना पसीना पोछा ही था कि इत्तर कि खुशबू उसकी नाक से होते हुए उसके मस्तिक्ष कि संवेदनाओ तक जा पहुची ! अभी वो कुछ समझ ही पता कि झोपड़े के अन्दर सतपाल को खड़ा देख स्तब्ध रह गया ! वो समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या प्रतिक्रिया दे ! धुल में सने कपडे में से पसीने कि बदबू आ रही थी, और सतपाल उसके सामने सूट बूट पहना इंग्लिश बाबु लग रहा था ! सतपाल का रंग पहले से काफी साफ़ हो गया था, उसका शारीर भी भर गया था ! चेहरे पर एक चमक सी आ गई थी ! सतपाल के कपड़ो से आती इत्तर कि खुशबू उसेक पूरी तरह विदेशी होने का संकेत दे रही थी ! अजीत अभी ये सब सोंच ही रहा था कि सतपाल ने उसे आगे बढ़ कर गले से लगा लिया और दोनों कि आँखे नाम सी हो गई ! अजीत भी सतपाल के कपड़ो से आती इत्तर कि खुशबू से अछुता न रहा ! अजीत ने अपनी आँखों कि नमी को पोछते हुए पुछा ......
"आखिर याद आ ही गई तुझे हमारी, इन १२ सालों में तेरा दिल कभी न तडपा अपने गाँव के लिए, अपने दोस्त के लिए "
सतपाल ने अपने जेब से रुमाल निकला और आँखे पोछते हुए शर्मिदगी के साथ कहा ......
"बहुत याद आती थी दोस्त इसलिए तो हमेशा के लिए तेरे पास आ गया हूँ , अब कभी न जाऊँगा लौट कर, अब बिलकुल दिल नहीं लगता है मेरा वहाँ "
अजीत - "अच्छा अंग्रेजी मेमो से भी दिल न लगा तेरा, मैंने तो सुना है कि परियो कि तरह होती है वहाँ कि मेम ! खैर छोड़ ये बता मेरे लिए क्या लाया है वहाँ से"
सतपाल - " तेरे लिए तो जान हाज़िर है, पर तू बता तुझे क्या चाहिए ?"
सतपाल के रंग ढंग, रूप सज्जा को देख कर अजीत के दिल में भी विदेश जाने कि इक्षा होने लगी, और उससे लगा यही अच्छा मौका है जब वो अपनी बात सतपाल के आगे रख सकता है ! अजीत सकुचाता हुआ अपने दिल के जज़्बात को सतपाल के सामने रख देता है !
अजीत - " मैं भी तेरी तरह विदेश जाना चाहता हूँ "
इन शब्दों ने जैसे सतपाल के होटो कि ख़ुशी अचानक ही छीन ली थी ! सतपाल गुस्से में झल्ला कर बोला
" तू भी सभी गाँव वालो कि तरह पागल हो गया है क्या ? जिसे देखो वही विदेश जाना चाहता है !"
ऐसा लगा जैसे सतपाल अपना मानसिक संतुलन खो बैठा हो ! फिर अगले ही पल उसे ख़याल आया कि शायद वो अपने दोस्त के साथ कुछ सख्ती से पेश आ रहा है, तुरंत ही अपने आप को वो शांत करता हुआ बोला ...
" दोस्त ये ख्याल निकाल दे अपने दिलो दिमाग से, तेरे जाने पर तेरे माँ बाबा का कौन ख्याल रखेगा, और तेरी शादी को दिन ही कितने हुए हैं, तेरे जाते ही भाभी भी तो अकेली पड़ जाएगी ! और विदेश जाने के लिए लाखो रूपए लगते है, वो कहाँ से लायेगा, क्या ज़मीन बेच कर ? ये गलती मत कर मेरे भाई ! "
इतना कहते हुए सतपाल ने उसे गले से लगा लिया, और बात को टालता हुआ अजीत के घरवालो कि खैर खबर पूछने लगा
सतपाल से मिलने के बाद से ही अजीत का दिल बेचैन हो रक्खा था ! विदेश जाने का ख्याल उसे भुलाये नहीं भूल रहा था ! खाना खाते वक़्त उसके मन में कशमकश थी विदेश जाने कि बात अपने बाबा से कैसे कहे ! हाँथ में निवाला पकडे काफ़िर देर से शून्य निहार रहा था !
" क्या हुआ ? खाना क्यों नहीं खता ?"
इस सवाल ने अजीत कि तन्द्रा भंग कर दी, उसके बाबा ने खाते खाते हाँथ का निवाला बीच में रोक कर अजीत से पुछा.....
"क्या सोंच रहा है ?"
अजीत - " बाबा आज अजीत मिला था ! बस उसके बारे मैं ही सोंच रहा था !"
बाबा - " हाँ मैंने भी सुना बहुत पैसा कमा के लौटा है विदेश से, सारा दिन आज बंगले पर उसकी बात हो रही थी !"
इतना कहते हुए अजीत के पिता खाना खाने लगे ! अजीत ये सोंचने लगा कि बाबा से पैसे कि बात कैसे करूं ! संकोच उसके होंटों का साथ नहीं दे रही थी ! डरता डरता बोला.....
" बाबा मुझे भी कुछ पैसे चाहिए "
बाबा ने बिना उसकी तरफ देखे कितने पैसे न पूछने के बजाय पुछा !
"किस लिए "
शायद अजीत के पिता ने अजीत के चेहरे पर कि बेचैनी का सबब पढ़ लिया था ! कुछ पल कि ख़ामोशी के बाद अजीत नज़रें चुराते हुए बोला !...
" मुझे भी विदेश जाना है ! मैं सारी जिंदगी खेतो में मजदूरी कर के नहीं गुजारना चाहता, मैं भी सतपाल कि तरह बड़ा बनना चाहता हूँ !
अजीत ने नीची नज़रों से ही अपने पिता कि तरफ देखा जो कि उस वक़्त उसे गुस्से से घूर रहे थे ! कुछ कहना चाहते थे मगर शब्द उनका साथ नहीं दे रहे थे ! अजीत खाने कि थाली को पीछे धकेल कर झुंझलाते हुए बोला...
" पैसे नहीं है तो ज़मीन बेच दो, कुछ दिन कि परेशानी होगी, फिर एक दो साल में हम सब कि किस्मत सुधर जाएगी, किसी को भी मन मार कर न रहना पड़ेगा!"
और बोलता हुआ कमरे से बहार निकल गया ! अजीत जनता था कि उसके बाबा इस बात के लिए बिलकुल राज़ी नहीं होंगे मगर ये बात करनी भी बहुत ज़रूरी थी उसके लिए, क्योंकि विदेश जाने के लिए पैसे का इंतजाम भी तो करना था !
शेष...........
Aapka Santosh..........
Bahut tanhaiya.N hai.N mere hisse mei.N churalo tum
Tumhara saath meri tanhaiyo.N se kuch to behtar hai...
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