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Originally Posted by Azaz AHMAD
मेहफिल ए तन्हाई में मेहताब क्या आते
नींद ही नही आई फ़िर ख्वाब क्या आते
निचोड़ कर रख दिये थे सारे दरिया मेंने
फ़िर हस्ती मिटाने को सेलाब क्या आते
यार सीरत तो अपनी ही अच्छी नही थी
फ़िर बच्चो में उसूलो आदाब क्या आते
काँटे बिछाये थे मेरी मंजिलों के रास्ते में
मेरे लिये वो लेके फ़िर गुलाब क्या आते
खाख ए मदीना मली थी बदन पे शदीद
छूने को फ़िर मुझको आजाब क्या आते
..Azaz AHMAD..
"SHADEED"
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Waah waah waah.!!!!
Bahot khoob azaz sahab.........
Khoob matla hua hai....Aur sabhi ashaar bahot khoob...
Likhte rahein...
Aate rahein.