परेशां है ग़म -
11th October 2012, 10:55 PM
परेशां है ग़म
ऐ ज़िन्दगी दी तूनें, मोहब्बत की नेह्मतें,
शायद इसीलिये तो, परेशां है ग़म,
दिले सकून का रहा, यह तुम से वायेदा,
तब्बस्सुम बिखेरते, चलेंगे जहाँ में हम,
ज़िंदा दिली से ज़िंदा, रहना है ज़िन्दगी,
बाहें उठा उठा के, कहेंगे जहाँ में हम,
आंसू बहाने से तो ,कुछ मिला नहीं कभी,
यह तेरी बुज़दिली है, नहीं तेरे करम,
ग़म ग़र ख़ुदा बने, तो है तुझमें कुछ कमीं,
ख़ुदा त देखे कितना, इन्सां रे तुझ में दम,
आओ उदासियों का, घर बर्बाद कर चलें,
और कहकहों में ढाल दें, बाकी रहा जो दम,
रखले भरोसा पगले, तू जो, आपने आप पे,
देगा ऊप रवाला, बस तू करता चल करम.
देगा ऊपर वाला, बस तू करता चल करम.
शामकुमार
Last edited by Sham Kumar; 11th October 2012 at 11:02 PM..
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