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Originally Posted by SonyRain
सैलाब से उठे पन्नों पर लिखे तो क्या लिखे
ख़याल आये चले गए , लिखे तो क्या लिखे
ना लिख magar कोई रास्ता नज़र नहीं आता
तूफान गुजर जाये यों ही कोई सहारा नज़र नहीं अता
ना जाने isse कोई, जो जाने वो पढ़े नहीं
जो पढ़े समझता कोई, गुजरे वो कहे नहीं
Naa khud ग़ुम हो soni, तेरी तरह और भी है
मौसकी तेरी कम नहीं, जहाँ मैं ग़ालिब और भी है
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Shayri.com per aap ka swagat hai Sony ji.......
Bohat sunder kavita hai........